बी॰ एन॰ राव - विकिपीडिया

प्रारम्भिक जीवन

बेनेगल नरसिंह राव का जन्म २६ फरवरी १८८७ को कारकल में हुअ था जो वर्तमान समय में कर्नाटक के दक्षिण केनेरा ज़िले में पड़ता है। उनका परिवार एक सुशिक्षित एवं सम्पन्न सारस्वत ब्राह्मण परिवार था। उनके पिता एक प्रसिद्ध डॉक्टर थे। नरसिंह राव ने केनेरा हाई स्कूल मंगलोर से शिक्षा प्राप्त की और पूरे मद्रास प्रेसीडेन्सी में सर्वाधिक अंक प्राप्त किये। १९०५ में उन्होंने स्नातक परीक्षा उतीर्ण की जिसमें उनको अंग्रेजी, संस्कृत और भौतिकी तीनों में प्रथम श्रेणी में अंक आये थे। छात्रवृत्ति पर वे १९०९ में कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज में प्रविष्ट हुए। वे १९०९ में आई सी एस की परीक्षा में सफल होने के बाद भारत लौट आये। . 50 लोगों के बैच में वो अकेले भारतीय थे।

अंग्रेज़ सरकार ने उनकी पहली नियुक्ति मद्रास में की थी। इस पर उन्होंने सिविल सर्विस कमिश्नर को एक पत्र भेजकर लिखा था, "जिस प्राँत में मेरी नियुक्ति हुई है, वहाँ मेरे बहुत सारे मित्र और संबंधी हैं। मद्रास प्रेसिडेंसी में ही मेरे पिता की ज़मीन भी है। इन परिस्थितियों में मैं अपना काम शायद पक्षपात से परे होकर न कर पाऊँ। इसलिए आपसे अनुरोध है कि आप मेरी नियुक्ति कहीं और कर दें. आप मुझे बर्मा भी भेज सकते हैं।" अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें बंगाल में नियुक्त कर दिया।

सन् 1938 में उन्हें 'नाइटहुड' की उपाधि दी गई। सन 1944 में जब वो रिटायर हुए तो तेज बहादुर सप्रू ने उनसे जम्मू कश्मीर के प्रधानमंत्री का दायित्व संभालने का अनुरोध किया। वे श्रीनगर गए लेकिन वहाँ अधिक दिनों तक नहीं रह सके। कश्मीर के महाराजा हरि सिंह की कार्यशैली से वो असहमत थे। उन्होंने अपना त्यागपत्र भेज दिया जिसमें उन्होंने लिखा, 'आपके निर्णयों पर बिना विश्वास किए उन्हें मानना ईमानदारी नहीं होगी।'

सन 1946 में बर्मा के प्रधानमंत्री यू आँग सान ने उन्हें देश के संविधान लिखने में मदद करने के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने इस काम को भी विशिष्टतापूर्वक पूरा किया। इसके बाद उन्हें कलकत्ता उच्च न्यायालय में स्थायी न्यायधीश बनाने का प्रस्ताव दिया गया। उन्होंने इसे अस्वीकार करते हुए वायसराय को पत्र लिखा, 'अगर मुझे मौका मिले तो मैं भारतीय संघ का संवैधानिक ढांचा बनाने में अपना योगदान दे सकता हूँ।' वायसराय ने उन्हें सचिव पद का दर्जा देकर गवर्नर जनरल सचिवालय के रिफ़ॉर्म ऑफ़िस में नियुक्त कर दिया। जुलाई 1946 में लॉर्ड वेवेल ने उन्हें संविधान सभा का संवैधानिक सलाहकार बनाया। बेनेगल नरसिंह राव ने प्रस्ताव रखा कि संवैधानिक सलाहकार पद पर अवैतनिक रूप में काम करेंगे। इसके लिए उन्होंने दो तर्क दिए- पहला यह कि हर पक्ष उन्हें निष्पक्ष मानेगा और दूसरा कि अगर संविधान के बनने में देरी होती है तो उसका दोष संविधान सभा के कार्यालय पर न आए।

भारतीय संविधान के पहले 243 अनुच्छेद बेनेगल नरसिंह राव ने तैयार किए। उसके बाद भीमराव आंबेडकर की अध्यक्षता वाली मसौदा समिति ने इसे विस्तार दिया। बेनेगल नरसिंह राऊ के मूल मसौदे में देश का नाम 'इंडिया' था उन्होंने एक संघ की परिकल्पना की थी जो 1935 के अधिनियम पर आधारित था। संविधान के तीसरे अध्याय में नीति निदेशक सिद्धांतों के लिए 41 प्रावधान थे।

सन् 1949 से 1952 तक नरसिंह राव संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई प्रतिनिधि रहे। इसके बाद उन्हें हेग में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की बेंच में जज बनाया गया। 26 फ़रवरी 1953 को जेनेवा में कैंसर से उनका निधन हो गया।

इसे एक विडंबना ही कहा जाएगा कि भारत के संविधान निर्माण में इतनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बावजूद उनके योगदान को उतना महत्व नहीं मिला जिसके वे अधिकारी थे।

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